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जन्माष्टमी कुंडली भविष्यवाणी: जानें कृष्ण भक्ति से जुड़ी विशेष बातें

योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, अर्थात् श्रीकृष्ण के जन्म के समय चन्द्रमा का संचार रोहिणी नक्षत्र में था। चन्द्रमा के रोहिणी नक्षत्र में भगवान का जन्म होने के कारण श्रीकृष्ण का चन्द्रमा से घनिष्ठ संबंध माना गया है। श्रीकृष्ण जिस मोरपंख का प्रयोग करते हैं, उसमें चंदूला (अग्रभाग चंद्रमा जैसा गोल शिखर होता है) सर्वप्रमुख है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रोहिणी, हस्त एवं श्रवण चन्द्रमा के तीन नक्षत्र हैं।

चंद्र के नक्षत्रों में जन्म लेते हैं कृष्ण भक्त – प्राचीन फलित ज्योतिष ग्रंथ है. श्रीकृष्ण के प्रमुख भक्तों की जन्मकुंडली के अध्ययन में बताया गया है कि कृष्ण भक्ति में जन्मकुंडली में उच्च वृषभ राशि का चंद्रमा या कर्क स्वराशि का चंद्रमा या पूर्ण बलि चंद्रमा का होना प्रमुख बिंदु है। ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन ग्रंथों से प्राप्त विवरण के अनुसार ज्योतिष शास्त्र में वर्णित सातत्य नक्षत्रों में चंद्रमा की शक्तियां वर्णित हैं, जो कि दक्ष प्रजापति की पुत्रियां थीं, उन सभी में से सबसे अधिक चंद्रमा को रोहिणी प्रिय थी। अन्य शिष्यों की मित्रता रोहिणी के साथ विशेष के कारण चन्द्रमा श्रापित हुए लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेकर इसे अत्यंत महत्वपूर्ण बताया।

चन्द्रमा का रोहिणी नक्षत्र तो श्रीकृष्ण के जन्म के कारण कृतार्थ हुआ लेकिन चौथ के चन्द्र दर्शन के कलंक से भगवान बच नहीं पाए। ज्योतिष शास्त्र में वर्णित अधिसंख्य योगों में बताया गया है कि चंद्रमा के श्रेष्ठ हो जाने के फलकथन के बारे में बताया गया है या चंद्रमा के कारण जो योग बने हैं, उन योगों के अध्ययन से पता चलता है कि इस प्रकार के ग्रहों में जन्मकुंडली में कौन से योग बनते हैं। जीवन में कृष्ण भक्ति की प्रधानता आती है। ज्येष्ठा नक्षत्र का संबंध बलराम से है, रोहिणी का नक्षत्र और ज्येष्ठा का प्रथमार्ध बलराम भक्ति उत्पन्न करने वाला माना गया है।

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