धर्म ज्योतिष

श्रीकृष्ण के गीता के 5 महत्वपूर्ण उपदेश: जानें जीवन का असली मतलब

कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर जब अर्जुन ने अपने सामने अपने मित्रों, भाइयों और गुरुओं को देखा, तो अर्जुन के अंदर से युद्ध करने की इच्छा खत्म होने लगी। अर्जुन को लगने लगा कि 'मैं आखिर किस बात के लिए अपने लोगों के विरुद्ध युद्ध छेड़ रहा हूं?' अर्जुन ने हाथ जोड़कर श्रीकृष्ण से कहा- 'माधव! मैं स्वंय को असहाय महसूस कर रहा हूं। मैं युद्ध नहीं कर सकता।' यह कहकर अर्जुन शस्त्र त्यागकर रणभूमि को छोड़ने लगे। युद्ध से पूर्व ही अर्जुन की ऐसी निराशाजनक इच्छाशक्ति देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया, जिसे सुनने के बाद अर्जुन को अपने प्रश्नों का उत्तर मिल गया। कई बार जीवन में ऐसा ही होता है, जब हम रिश्तों की उलझनों में इतने उलझते जाते हैं कि हमें इस दुनिया को छोड़कर कहीं भाग जाने का मन करता है। ऐसे में आपको एक बार श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश जरूर पढ़ने चाहिए।

​आंतरिक शांति क्या है

आंतरिक शांति एक ऐसी दिव्य अनुभूति है, जिसमें आपके दिमाग से न खत्म होने वाला शोर एक दिन मिट जाता है। जब आप अपने दिमाग पर नियंत्रण रख लेते हैं, तो आप अपनी इंद्रियों को भी नियंत्रित कर लेते हैं। इसके बाद आप अपनी मर्जी से वो सभी काम कर पाते हैं, जिसमें आपका और समाज का हित छुपा होता है। आंतरिक शांति एक ऐसी भावना है, जिसमें आनंद की चरम सीमा पर होते हैं और आपके अंदर और पाने की लालसा समाप्त हो जाती है।

​योगी कौन है

जिन लोगों ने वासना और अंहकार को छोड़कर केवल समाज की भलाई के लिए सोचा है और जिसमें लोगों को माफ करने का गुण है, वे मनुष्य ही योगी है। ऐसा योगी मृत्यु से पहले ही इस धरती पर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। योगी घटनाओं से सीखता है और आगे बढ़ जाता है।

​मोह और प्रेम में क्या अंतर है

मोह निरंतर किसी चीज को अपने प्रभुत्व या नियंत्रण में रखने का नाम है। किसी चीज या व्यक्ति को न छोड़ पाना ही मोह है। जबकि प्रेम को किसी व्यक्ति को बांधने की आवश्यकता नहीं होती। प्रेम में व्यक्ति स्वंय से पहले उसे रखता है, जिससे उसे प्रेम है। प्रेम एक ऐसी भावना है, जो आपके दिल में बसती है, फिर चाहे आप किसी व्यक्ति से कितने ही दूर क्यों न हो। उसका अस्तित्व ही काफी होता है।

​निस्वार्थ प्रेम क्या है

निस्वार्थ प्रेम केवल बुद्धिवान और विवेकशील लोग ही कर सकते हैं। जो लोग अपने से पहले दूसरों की भलाई सोचते हैं, वो निस्वार्थ प्रेम करने वाले योगी है। वे अपनी हर गतिविधि को अपने कल्याण से ज्यादा समाज के कल्याण से जोड़कर देखते हैं।

​सहानुभूति क्या है

जो अपनी नकारात्मक भावनाओं को काबू में करके संपूर्ण संसार के प्रति सहानुभूति रखता है और दूसरे लोगों की पीड़ाओं को भी अपना समझता है। संसार में ऐसा व्यक्ति महान है। ऐसे व्यक्ति का रिश्ता केवल अपने लोगों से नहीं बल्कि प्रत्येक जीव के साथ होता है।

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